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ग़ज़ल
मुझे पूछा है आ कर तुम ने उस अख़्लाक़-ए-कामिल से
कि मैं शर्मिंदा हो कर रह गया अंदाज़ा-ए-दिल से
एहसान दानिश
ग़ज़ल
सहर हम ने चमन-अंदर अजब देखा कल इक दिलबर
सही क़ामत परी-पैकर मुक़त्त'अ-वज़्अ खुश-मंज़र
नज़ीर अकबराबादी
ग़ज़ल
खुलेगा नाख़ुन-ए-शमशीर से उक़्दा मिरे दिल का
किसी क़ातिल से है आसान होना मेरी मुश्किल का
मीर कल्लू अर्श
ग़ज़ल
सुनी तो उस ने ग़ैरों से हुआ गो बद-गुमाँ हम से
बहर-सूरत रही बेहतर हमारी दास्ताँ हम से
अफ़क़र मोहानी
ग़ज़ल
बन के किस शान से बैठा सर-ए-मिंबर वाइ'ज़
नख़वत-ओ-उज्ब हयूला है तो पैकर वाइ'ज़